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तो अब हम क्या करें? बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकरी की राजनीति और विरासत के हिंदुत्वकरण के बाद ओबीसी कार्ड और द्रविड़ आंदोलन के केसरियाकरण से हमारे पास वैकल्पिक कोई राजनीति नहीं है क्योंकि वामपंथ की अब कोई साख नहीं है। अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा अब भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी का है तो बैंकिंग ही खत्म हो जाने का अंदेशा है।बैंको को दिवालिया कर देने के बाद मुद्रा की साख खत्म हो जा

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तो अब हम क्या करें?

बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकरी की राजनीति और विरासत के हिंदुत्वकरण के बाद ओबीसी कार्ड और द्रविड़ आंदोलन के केसरियाकरण से हमारे पास वैकल्पिक कोई राजनीति नहीं है क्योंकि वामपंथ की अब कोई साख नहीं है।

अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा अब भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी का है तो बैंकिंग ही खत्म हो जाने का अंदेशा है।बैंको को दिवालिया कर देने के बाद मुद्रा की साख खत्म हो जाने से जो आर्थिक अराजकता की स्थिति बन रही है,वह कालेधन की अर्थव्यवस्था से ज्यादा खतरनाक है।

पलाश विश्वास

हमने व्यापक पैमाने पर समाज के विभिन्न तबकों के लोगों से बात की है तो पता चला है कि गांवों और शहरों में नोटबंदी के खिलाफ अभी कोई माहौल बना नहीं है तो कालाधन वापसी की किसीको कोई उम्मीद भी नहीं है।लोग रातोंरात कैशलैस अर्थव्यवस्था के पक्ष में हो गये हैंं और उन्हें उम्मीद है कि सुनहले दिन अब आने ही वाले हैं।मोदी ने अमीरों के खिलाफ गरीबों को भड़काने का काम बखूब कर दिया है और अपने संपन्न पड़ोसियों के मुकाबले बहुसंख्य जनता को नोटबंदी में खूब मजा आ रहा है और उन्हें आने वाले खतरों के बारे में कोई अंदाजा नहीं है।आगे वे मोदी के नये करतबों और आम बजट में राहत का इंतजार कर रहे हैं।कालाधन के अलावा उन्हें बेनामी संपत्ति भी जब्त हो जाने की उम्मीद है।उन्हें समझाने और अर्थतंत्र के शिकंजे में फंसी उनकी रोजमर्रे के हकीकत का खुलासा करने का हमारा कोई माध्यम नहीं है और न कोई राजनीति ऐसी है जो आम जनता के हक हकूक के बारे में सच उन्हें बताने की किसी योजना पर चल रहा है।

हम यही बताने की कोशिश कर रहे है कि हिंदुओं के ध्रूवीकरण की राजनीति विपक्ष के अंध हिंदुत्व विरोध से जितना तेज हुआ है,उसी तरह अंध मोदी विरोध से भी कोई वैकल्पिक राजनीति तब तक नहीं बनती जब तक सच बताने और समजानेका हमारा कोई सुनियोजित कार्यक्रम और माध्यम न हो।हिंदुत्व के फर्जी एजंडा का पर्दाफाश करने की कोई जमीनी कवायद हम कर नहीं पाये हैं।तो संसदीय हंगामा से हम फासिज्म के राजकाज पर किसीभी तरह का अंकुश नहीं लगा सकते हैं। रोज नये नये सत्यानाशी फरमान जारी हो रहे हैं,जिनका असल मतलब और मकसद बताने और समझने का कोई नेटवर्क हमारे पास नहीं है।

मसलन बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोदी के खिलाफ नोटबंदी के बाद पुराने नोट फिर बहाल करने की मांग लेकर जिहाद छेड़ दिया है और वे दिल्ली,लखनऊ और पटना घूमकर नया राजनीतिक समीकरण बनाने के फिराक में हैंं।प्रबल जनसर्तन होने के बावजूद उनकी इस मुहिम को आम जनता का समर्थन कतई नहीं है और वे मोदी के करिश्मे से अपने दिन फिरने का इंतजार कर रहे हैं और जो गरीब लोग हैं,वे छप्पर फाड़ सुनहले दिनों का इंतजार कर रहे हैं।वामपंथियों काकोईजनाधार बचा नहीं है तो दीदी का कोई जनाधार भी दिख नहीं रहा है।इसके विपरीत भूमिगत सारे संघी सतह पर आ गये हैं और मोदी की छवि सामने रखकर वे बंगाल का तेजी से केसरियाकरण कर रहे हैं।

नोटबंदी क्रांति के बारे में हमें पहले दिन से ही खुशफहमी नहीं रही है।हमने शुरुआत में ही लिखा हैनई विश्वव्यवस्था  में नागपुर तेलअबीब और वाशिंगटन गठभंधन के आधार पर अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर ग्लोबल हिंदुत्व के उम्मीदवार घनघोर रंगभेदी डोनाल्ड ट्रंप के ताजपोशी से पहले भारत में आर्थिक आपातकाल लागू हो गया है।

अब जो हालात बन रहे हैं,वे बेहद खतरनाक हैं।बेहद खतरनाक इसलिए हैं कि हमारे पास वैकल्पिक कोई राजनीति नहीं है।आज बाबासाहेब डा.भीमराव बोधिसत्व का परिनिर्वाण दिवस है।देशभर में परिनिर्वाण दिवस की धूम लगी रही।तो दूसरी ओर,तमिलनाडु में तीन दशकों से द्रमुक राजनीति की धुरी बनी हुई अम्मा का अवसान हो गया।वामपंथ के भारतीय परिप्रेक्ष्य में हाशिये पर चले जाने के बाद अंबेडकरी और द्रमुक आंदोलन के दिशाहीन हो जाने से वैकल्पिक राजनीति अब विश्वविद्यालयी छात्रो के जयभीम कामरेड तक सीमाबद्ध हो गयी है।

हमने पिछले दिनों ओबीसी कार्ड के नये राजनीतिक समीकरण पर जो लिखा है,उससे देस में सबसे बड़ी आजादी के पढ़े लिखे लोग नाराज हो सकते हैंं।लेकिन सच यही है कि ओबीसी कार्ड के जरिये संघ परिवार ने पहले सत्ता दखल किया और हिंदुत्व के एजंडे के साथ राजकाज शुरु हुआ।अब वही हिंदुत्व कार्ड प्रधानमंत्री की अस्मिता राजनीति के तहत कारपोरेट एजंडा में तब्दील हुआ जा रहा है।इससे संघ परिवार का दूर दूर का कोई संबंध नहीं है।

भले ही राममंदिर आंदोलन और हिंदुत्व का एजंडा हाशिये पर है लेकिन संघ परिवार का यह ओबीसी समर्थित कारपोरेट एजंडा असहिष्णुता की रंगभेदी राजनीति से कही ज्यादा खतरनाक है।देश की सबसे बड़ी आबादी को यह बात समझ में नहीं आ रही है तो देश में अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली के एकाधिकार देशी विदेशी के  कब्जे में चले जाने पर होने वाली नरसंहारी आपदाओं के बारे में हम किसे समझायें।

आज अम्मा को द्रमुक राजनीति के ब्राह्मणवाद विरोध और नास्तिकता के दर्शन के मुताबिक दफनाया गया है।हम भारतीय राजनीति में मातृसत्ता का समर्थन करते हैं।हम महिलाओं के राजनीतिक नेतृत्व का ही नहीं,जीवन में हर क्षेत्र में उनके नेतृत्व के पक्ष में हैं।जाति के आधार पर आधी आबादी ओबीसी के कार्ड के जरिये केसरिया है तो लिंग के आधार पर आधी आबादी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के कब्जे में हैं।विकास का तंत्र जनपदों के सीमांत व्यक्ति तक पहुंचाने,आम जनता की बुनियादी जरुरतों और सेवाओं की सबसे ज्यादा परवाह करने और सीधे जनता से संवाद और जनसुनवाई के लिए अम्मा जयललिता की स्त्री अस्मिता निर्णायक रही है और उनकी राजनीति सीधे रसोई से शुरु होती है,इसमें भी हमें कोई शक नहीं है।

ममता बनर्जी की राजनीति से सिरे से असहमत होने के बावजूद एक आजाद जनप्रतिबद्ध स्त्री के बतौर उनकी राजनीति का हम शुरु से समर्थन करते रहे हैं तो श्रीमती गांधी से लेकर सुषमा स्वराज और बहन मायावती की राजनीतिक भूमिका को हम सामाजिक बदलाव की दिशा में सकारात्मक मानते हैं और इसी सिलसिले में करीब पंद्रह साल से आमरण अनशन करने वाली मणिपुर की लौैहमानवी इरोम शर्मिला के संसदीय राजनीति में लड़ने के फैसले का हम विरोध नहीं करते।क्योंकि समता,न्याय औरसहिष्णुता के लिए पितृसत्ता का टूटना सबसे ज्यादा जरुरी है।

जयललिता ने अयंगर ब्राह्मण होते हुए,जन्मजात कनन्ड़ भाषी होते हुए अपने सिनेमाई करिश्मा से तमिल अनार्य द्रविड़ आम जनता के साथ जो तादात्म्य कायम किया और जिस तरह वे द्रविड़ राजनीति का तीन दशकों से चेहरा बनी रही,वह हैरतअंगेज और अभूतपूर्व है और हम उनके निधन को तमिलनाडु में मातृसत्ता का अवसान मानते हैं।इसके बावजूद सच यह है कि अम्मा का अंतिम संस्कार वैदिकी रीति रिवाज के मुताबिक हुआ तो फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें चिताग्नि में समर्पित करने के बजाय दफनाया गया है।यह रामास्वामी पेरियार के आत्मसम्मान और अनास्था आंदोलन के विपररीत द्रविड़ आंदोलन का केसरियाकरण है।

बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकरी की राजनीति और विरासत के हिंदुत्वकरण के बाद ओबीसी कार्ड और द्रविड़ आंदोलन के केसरियाकरण से हमारे पास वैकल्पिक कोई राजनीति नहीं है क्योंकि वामपंथ की अब कोई साख नहीं है।

तो अब हम क्या करें?

अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा अब भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी का है तो बैंकिंग ही खत्म हो जाने का अंदेशा है।बैंको को दिवालिया कर देने के बाद मुद्रा की साख खत्म हो जाने से जो आर्थिक अराजकता की स्थिति बन रही है,वह कालेधन की अर्थव्यवस्था से ज्यादा खतरनाक है।



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