Quantcast
Channel: Himalayan Altitudes
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1119

जाति के सच का मतलब इसके सिवाय कुछ और नहीं हो सकता कि हम जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन के तहत चलकर समता और न्याय का रास्ता चुनें जिसके लिए मेहनतकशों का वर्गीय ध्रूवीकरण अनिवार्य है,जिसे जाति का अंत हो और निरंकुश फासीवादी रंगभेदी नस्ली कारपोरेट मजहबी सत्ता का तख्ता पलट हो। जाहिर है कि अस्मिता राजनीति को खत्म किये बिना हम मजहबी सियासत के शिंकजे से न आम जनता और न इस मुल्क को रिहा क�

$
0
0

जाति के सच का मतलब इसके सिवाय कुछ और नहीं हो सकता कि हम जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन के तहत चलकर समता और न्याय का रास्ता चुनें जिसके लिए मेहनतकशों का वर्गीय ध्रूवीकरण अनिवार्य है,जिसे जाति का अंत हो और निरंकुश फासीवादी रंगभेदी नस्ली कारपोरेट मजहबी सत्ता का तख्ता पलट हो।

जाहिर है कि अस्मिता राजनीति को खत्म किये बिना हम मजहबी सियासत के शिंकजे से न आम जनता और न इस मुल्क को रिहा कर सकते हैं।इसके लिए जाहिर है कि राजनीति के अंक गणित, बीज गणित,रेखा गणित, सांख्यिकी और त्रिकोणमिति, भौतिकी और रसायनशास्त्र को सिरे से बदलना होगा।  

पलाश विश्वास


कल रात प्रबीर गंगोपाध्याय की किताब जनसंख्या की राजनीति के हिंदी अनुवाद की पांडुलिपि उन्हें भेज दी है। फिलहाल मेरे पास अनुवाद का कोई काम नहीं है। आजीविका और आवास की समस्याओं में बेतरह उलझा हुआ हूं। ये समस्याएं इतनी जटिल हैं कि जल्दी सुलझने के आसार नहीं है।वैसे भी देश में इस वक्त सबसे बड़ा संकट आजीविका और रोजगार का है। डिजिटल इंडिया में युवाओं के लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में कोई रोजगार नहीं है तो मीडिया से बाहर निकलने के बाद नये सिरे से अपने पांवों पर खड़ा होना बहुत मुश्किल है,खासकर तब जब आपके लिए सर छुपाने की कोई जगह नहीं बची है।

इस बीच बुद्ध जयंती के अवसर पर दक्षिण कोलकाता के गड़िया में बंगाल के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं से संवाद की स्थिति बनी है।उधर हमारे पुराने मित्र विद्याभूषण रावत ने वह वीडियो भी जारी कर दिया,जिसमें यूपी के चुनाव से पहले के हालत पर हमने चर्चा की थी।

कुछ मुश्किल सवाल रावत ने पूछे थे,जिसके जबवा शायद हम कायदे से दे नहीं सके हैं।गड़िया में जिन कार्यकर्ताओं से संवाद की स्थिति बनी है और बाकी देश के जिन मित्रों और साथियों से बात होती रहती है,उनके सवालों के जबाव भी हमारे पास नहीं है।

इस बीच दो बार हमारे प्रबुद्ध मित्र डाक्टर आनंद तेलतुंबड़े से बी बात होती रही है।उनसे भी इस बारे में चर्चा होती रही है।

घनघोर संकट है।चारों तरफ नजारा कटकटेला अंधियारा का है।

सवाल फिर जाति और वर्ग का है।

जैसा कि हम बार बार लिखते रहे हैं और बोलते रहे हैं,मेहनतकशों के वर्गीय ध्रूवीकरण के सिवाय इस गैस चैंबर से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।

जाति के जटिल यथार्थ को जानते हुए हम ऐसा कह लिख रहे हैं।

जाति की समस्या को सुलझाये बिना,जाति को सिरे से खत्म किये बिना बदलाव की कोई सूरत नहीं बन सकती,यह सबसे बड़ी चुनौती यकीनन है।जिसे बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर पहले ही साफ कर चुके हैं।

जाति व्यवस्था की संरचना को देखें तो बहुसंख्यक आम जनता, खासकर मेहनतकश तबके के लोग ,किसान, खेतिहर मजदूर, कृषि और प्रकृति से जुड़े तमाम समुदाय, असंगठित मजदूर और शरणार्थी दलित, पिछड़े हैं।

आदिवासी जाति व्यवस्था के अंतर्गत नहीं हैं लेकिन बाकी जनता से अलगाव की हालत में उनकी हालत सबसे खराब है।उसी तरह अल्पसंख्यकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति भी दलितों से बेहतर नहीं है।

दूसरी ओर यह भी सच है कि जाति व्यवस्था के मुताबिक जो वर्चस्ववादी और कुलीन जातियां है, वही आर्थिक राजनीतिक सत्ता के अधिकारी हैं।उनका  ही मुक्तबाजार और एकाधिकार वर्चस्व का सत्ता वर्ग है और अस्मिता की राजनीति के तहत जातियाों को लगातार मजबूत बनाते हुए हम उनसे लड़ नहीं सकते।

हम बताना चाहते हैं कि बामसेफ से अलग हो जाने के बाद देश भर के अंबेडकरी कार्यकर्ताओं के साथ हम लोगों ने अंबेडकरी आंदोलन के एकीकरण की कोशिश बामसेफ एकीकरण अभियान के तहत किया था।जिसके लिए देशभर के अंबेडकरी कार्यकर्ताओं के तीन सम्मेलन मुंबई,नागपुर और भोपाल में हुए थे।

नागपुर और मुंबई का सम्मेलन खुला था,जिसमें हमारे और दूसरे साथियों के वक्तव्य यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।

मुबंई और नागपुर के दोनों सम्मेलनों में यह आम राय बनी थी कि अंबेडकरी आंदोलन का दायरा तोड़ना होगा और इसे अस्मिता की राजनीति से बाहर निकालना होगा। यह भी तय हो गया था कि विमर्श की भाषा लोकतांत्रिक होगी, जिसमें सभी तबकों को संबोधित किया जायेगा।

विभिन्न संगठनों का संघीय ढांचा बनाकर एकीकृत अंबेडकरी आंदोलन के मिशन पर तमाम लोग सहमत थे।अंबेडकरी आंदोलन को संगठनात्मक तौर पर लोकतांत्रिकऔर संस्थागत  बनाने पर भी आम सहमति हो गयी थी।

यह तय हुआ था कि व्यक्ति निर्भर संगठन की बजाये हम संस्थागत जाति वर्चस्व की राजीति के मुकाबले संस्थागत आंदोलन और संगठन चलायेंगे। लेकिन संस्था के निर्माण के मुद्दे पर भोपाल में हुए सम्मेलन में गहरे मतभेद आ गये क्योंकि नागपुर और महाराष्ट्र के कुछ साथी नई संस्था पर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते थे जिससे वह अभियान स्थगित हो गया।

वे भी किसी खास जाति के ही लोग थे।जिनकी गरज बाबासाहेब के मिशन से बेहद ज्यादा अपनी ही जाति के वर्च्सव को बनाये रखने को लेकर थी,जिसके तहत उन्होंने अंबेडकरी विचारधारा और आंदोलन का बेड़ा गर्क करते हुए उसका हिंदुत्वकरणा कर दिया है।उनकी वजह से अब अंबेडकरी आंदोलन पर किसी विमर्श की भी गुंजाइश नहीं है।जाति वर्चस्व के लिए भारत में साम्यवादी और समाजवादी विचारधारा और आंदोलन की भी वही गति और नियति हैं।

इस चर्चा का हवाला देना इसलिए जरुरी है कि अंबेडकरी आंदोलन के प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भी मानने लगे हैं कि जाति आधारित पहचान के साथ किसी संगठन और आंदोलन से बदलाव की कोई संभावना नहीं बनती और इससे आखिर जातिव्यवस्था को ही वैधता मिलती है और वह मजबूत होती है, जो समता और न्याय पर आधारित समाज और राष्ट्र के निर्माण के अंबेडकरी मिशन और अंबेडकरी विचारधारा के खिलाफ है।

कई साल हो गये।हम फिर पुराने साथियों को जोड़ नहीं सके हैं और न यह विमर्श चालू रख सके हैं।

इसके विपरीत दुनियाभर में जहां भी राष्ट्र और समाज में परिवर्तन हुए हैं,वह अस्मिता तोड़कर मेहनतकश आवाम की गोलबंदी से हुई है।उनका वर्गीय ध्रूवीकरण हुआ है।

चर्च की दैवी सत्ता के खिलाफ पूरे यूरोप में किसानों के आंदोलन, फ्रांसीसी क्रांति, अमेरिका की क्रांति से लेकर रूस और चीन की क्रांति के साथ साथ आजादी से पहले भारतीय जनता के संयुक्त मोर्चे के तहत स्वतंत्रता संग्राम और उसके नतीजतन भारत की आजादी इसके उदाहरण हैं।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ अश्वतों के आंदोलन को भी ङम अस्मिता आंदोलन नहीं कह सकते और न लातिन अमेरिकी देशों में निरंतर जारी बदलाव के संघर्ष में अस्मित राजनीति की कोई जगह है।

हालांकि राष्ट्र का चरित्र अब भी सामंती औपनिवेशिक है।लेकिन राष्ट्र अब निरंकुश सैन्य राष्ट्र  है और अर्थव्यवस्था से उत्पादकों का, मेहनतकशों और किसानों से लेकर छोटे और मंझौले कारोबारियों,छोटे और मंझौले उद्योगपतियों को या निकाल फेंका गया है या हाशिये पर रखा दिया गया है और सत्ता वर्ग के साथ संसदीय राजनीति कारपोरट पूंजी से नियंत्रित होती है।

सत्ता रंगभेदी है और फासिस्ट है।

यह सत्ता भी निरंकुश है जो दमन और उत्पीड़न के साथ साथ रंगभेदी नरसंहार के तहत आम जनता को कुचलने से परहेज नहीं करती।

समूचा राजनीतिक वर्ग करोड़पति अरबपति हो जाने से लोकतंत्र में आम जनता का वास्तव में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

जिस संविधान की बात हम करते हैं,वह कहीं लागू नहीं है।

कानून का राज अनुपस्थित है।

समता और न्याय का लक्ष्य तो दूर की बात देश का लोकतांत्रिक संघीय ढांचा टूटने लगा है और आम जनता जाति,धर्म,नस्ल,भाषा और क्षेत्र की विविध अस्मिताओं के तहत बंटी हुई है।

भारत का विभाजन इसी अस्मिता राजनीति के तहत हुआ है और अस्मिता राजनीति के तहत राष्ट्र के रुप में हम खंड खंड हैं।

सबका अपना अलग अलग राष्ट्र है।

अस्मिता राजनीति के तहत धार्मिक ध्रूवीकरण की राजनीति ही अब राजनीति हो गयी है।जनसंख्या के हिसाब से इस देश में विभाजनपूर्व भारत की तरह अब भी दो बड़ी राष्ट्रीयताएं एक दूसरे के खिलाफ मोर्चाबंद हैं,हिंदू औकर मुसलमान और हकीकत यह है कि बाकी तमाम अस्मिताएं इन्हीं दो राष्ट्रीयताओं से नत्थी हो गयी है।

इनमें से हिंदू अस्सी फीसद या उससे ज्यादा हैं तो मुसलमान सिर्फ सत्रह प्रतिशत।अल्पसंख्यक होने की वजह से मुसलमान गहन असुरक्षाबोध और नस्ली नरसंहार के राजकाज और राजनीतिक की वजह से बेहतर सामाजिक राजनीतिक और पर बेहतर संगठित है लेकिन आर्थिक हैसियत और रोजगार के मामले में वे कही नहीं है।विविधता और बहुलता का लोकतंत्र और सहिष्णुता का अमन चैन गायब हैं।

आदर्श की बात रहने दें, धार्मिक अस्मिता अंततः निर्णायक होती है।जातियां छह हजार से ज्यादा है और कोई एक जाति भी संगठित नहीं है।

उनमें उपजातियों और गोत्र के नाम गृहयुद्ध है।

संविधान कानूनी हक हकूक पाने में मददगार है जो कहीं लागू नहीं है।जो जातियां अलग अलग भी संगठित नहीं हैं,बाबासाहेब के सौजन्य से तीन श्रेणियों में अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और पिछड़े बतौर भी वे संगठित नहीं हो सके हैं।

सत्ता में हिस्सेदारी भी अलग अलग बाहुबलि ,वर्चस्ववादी,मजबूत जातियों को मिलती रही हैं और बाकी जातियों के लोग तमाम हकहकूक से वंचित रहे हैं।

तो जाहिर है कि जाति चाहे जितनी मजबूत हो,वे दूसरी कमजोर जातियों को दबायेंगे और सारी मलाई खाकर दूसरों को भूखों प्यासा मार देंगी।

इससे कमजोर जातियों और समुदायों,यहां तक कि धार्मिक समुदायों के लिए भी सबसे बड़ी बहुसंख्य अस्मिता की शरण में जाने के सिवाय कोई रास्ता बचता नहीं है।

एक प्रतिशत से कम या उससे थोड़ा ज्यादा जनसंख्या वाले बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म,जैन धर्म और सिख धर्म का उसीतरह हिंदुत्वकरण हो गया है ,जैसे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का।

इनमें से किसी वर्ग का मुसलमानों से कोई साझा मोर्चा बन नहीं सका है,क्योंकि अस्सी फीसद हिंदुओं के मुकाबले मुसलमान सिर्फ सत्रह प्रतिशत हैं।

जाहिर सी बात है कि लोकतंत्र में बहुमत के साथ नत्थी हो जाने पर अस्मिता राजनीति को सत्ता में हिस्सेदारी मिल सकती है।

क्योंकि भारत में अस्मिता राजनीति अंततः धर्म राष्ट्रीयता बन जाती है।

सीधे तौर पर हिंदुत्व बनाम इस्लाम।

यही ध्रूवीकरण भारत विभाजन का आधार रहा है और आजादी के बाद पिछले सात दशकों में राजनीति कुल मिलाकर इसी ध्रूवीकरण की राजनीति है,जिससे मुसलमानों की हैसियत में कोई बदलाव नहीं हुआ और वे बलि के बकरे बना दिये गये हैं तो दूसरी तरफ हिंदुत्व की राजनीति ही सत्ता की राजनीति रही है, इस राजनीति में छह हजार से ज्यादा जातियां, अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय बौद्ध,ईसाई,सिख,जैन सारे के सारे नत्थी हो गये।

हिंदुत्व की राजनीति इसीलिए अपराजेय हो गयी है।

अस्मिता राजनीति में हिंदुत्व की विचारधारा का मुकाबला जातियां नहीं कर सकतीं और न अति अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के हित हिंदुत्व से जुड़े बिना सुरक्षित हो सकती है। बल्कि हिंदुत्व जाति और जाति व्यवस्था से निरंतर मजबूत होता है।

जाति को मान लेने का मतलब ही यह हुआ कि आप चाहे ब्राह्मणवाद,ब्राह्मण धर्म और जाति बतौर ब्राह्मणों की कितना ही विरोध करें,आप मनुस्मृति के विधानके मुताबिक चल रहे हैं।

रोजमर्रे की जिंदगी में भी तमाम जातियां हिंदुत्व के विविध संस्कार,नियम और विधि का पालन करती हैं।

जाति के सच का मतलब इसके सिवाय कुछ और नहीं हो सकता कि हम जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन के तहत चलकर समता और न्याय का रास्ता चुनें जिसके लिए मेहनतकशों का वर्गीय ध्रूवीकरण अनिवार्य है,जिसे जाति का अंत हो और निरंकुश फासीवादी रंगभेदी नस्ली कारपोरेट मजहबी सत्ता का तख्ता पलट हो।

जाहिर है कि अस्मिता राजनीति को खत्म किये बिना हम मजहबी सियासत के शिंकजे से न आम जनता और न इस मुल्क को रिहा कर सकते हैं।इसके लिए जाहिर है कि राजनीति के अंक गणित,बीज गणित,रेखा गणित,सांख्यिकी और त्रिकोणमिति, भौतिकी और रसायनशास्त्र के सिरे से बदलना होगा।  



Viewing all articles
Browse latest Browse all 1119

Trending Articles


Girasoles para colorear


mayabang Quotes, Torpe Quotes, tanga Quotes


Tagalog Quotes About Crush – Tagalog Love Quotes


OFW quotes : Pinoy Tagalog Quotes


Long Distance Relationship Tagalog Love Quotes


Tagalog Quotes To Move on and More Love Love Love Quotes


5 Tagalog Relationship Rules


Best Crush Tagalog Quotes And Sayings 2017


Re:Mutton Pies (lleechef)


FORECLOSURE OF REAL ESTATE MORTGAGE


Sapos para colorear


tagalog love Quotes – Tiwala Quotes


Break up Quotes Tagalog Love Quote – Broken Hearted Quotes Tagalog


Patama Quotes : Tagalog Inspirational Quotes


Pamatay na Banat and Mga Patama Love Quotes


Tagalog Long Distance Relationship Love Quotes


BARKADA TAGALOG QUOTES


“BAHAY KUBO HUGOT”


Vimeo 10.7.0 by Vimeo.com, Inc.


Vimeo 10.7.1 by Vimeo.com, Inc.